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अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार जानिए किस क्षेत्र में होंगे आप सफल...* ===============================

 

1. अश्विनी नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोग अगर यातायात से जुड़ा कोई कार्य करेंगे तो उन्हें सफलता मिलेगी। इसके अलावा खेल, दवाइयां, कृषि, जिम, जौहरी, सुनार आदि से संबंधित क्षेत्र भी फायदा पहुंचाएंगे।

2. भरणी नक्षत्र भरणी नक्षत्र में जन्मे जातकों को जन्म देने वाली दाई, गृह सेवक, शवगृह अधिकारी, दाह-संस्कार से संबंधित कार्य करने चाहिए। वे बच्चों का ध्यान रखने वाले या नर्सरी स्कूल के अध्यापक के तौर पर भी कार्य कर सकते हैं। तम्बाकू, कॉफी, चाय से जुड़े क्षेत्र भी लाभ पहुंचाएंगे।

3. कृत्तिका नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग ऐसे क्षेत्र में सफल हो सकते हैं, जो नुकीली चीज या तेज धार से जुड़े हों। आप चाकू, तलवार के निर्माण से जुड़ सकते हैं या फिर अच्छे लोहार या वकील भी साबित हो सकते हैं। अगर आप ऐसे किसी कार्य से जुड़ते हैं जिसके अनुसार नशे के आदी लोगों को सुधारा जाता है तो अवश्य सफलता मिलेगी।

4. रोहिणी नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र से संबंधित लोग खानपान के कार्य से जुड़ेंगे तो सफलता मिलेगी। खाना बनाना हो या फिर बांटना, ये कार्य आपके लिए उत्तम हैं। इसके अलावा कला का क्षेत्र भी आपके लिए है। आप अच्छे कलाकार, गायक, संगीतकार भी हो सकते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे लोग रचनात्मक होते हैं।

5. मृगशिरा नक्षत्र यात्रा से जुड़े कार्य में अगर आप संलग्न हैं तो आपको अवश्य ही सफलता मिलेगी। इसके अलावा शिक्षा, खगोलशास्त्र, पैसे का हिसाब-किताब रखना, ये सभी क्षेत्र भी आपको लाभ दिलवाएंगे। कपड़े के काम में लिप्त लोगों को भी लाभ मिलेगा।

6. आर्द्रा नक्षत्र बिजली के उपकरण या बिजली से संबंधित कोई अन्य कार्य करना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। कम्प्यूटर, तकनीक, गणित, वैज्ञानिक, गैमिंग आदि से संबंधित क्षेत्र आपके लिए हैं। इसके अलावा डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ का काम भी आपको सूट करेगा। अगर आप जासूस हैं या रहस्य सुलझाने जैसे कार्य कर रहे हैं तो भी आपको सफलता मिलेगी।

7. पुनर्वसु नक्षत्र काल्पनिक कहानियां लिखने या खरीदने-बेचने से संबंधित कोई कार्य करना, ये आपके लिए फायदेमंद साबित होंगे। यात्रा और रखरखाव से संबंधित कार्य भी आप कर सकते हैं। अगर आप होटल मैनेजमेंट में कार्यरत हैं या फिर दीक्षा देने का काम करते हैं तो आपको फायदा मिलेगा। इतिहासकार या भेड़-बकरियों को पालने वाले लोग भी सफलता प्राप्त करेंगे।

 

8. पुष्य नक्षत्र दूध से संबंधित व्यापार करने वाले लोग सफलता प्राप्त करेंगे। कैटरिंग करने वाले और होटल चलाने वाले लोग भी अच्छे व्यवसाय में हैं। नेता, शासक, धार्मिक कार्य करने वाले लोग, शिक्षक और अध्यापक आदि लोग लाभ प्राप्त करते हैं।

9. आश्लेषा नक्षत्र पेट्रोलियम, सिगरेट, कानूनी, दवाइयों से संबंधित इंडस्ट्री से जुड़े लोग अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे। इस नक्षत्र में जन्मे लोग तांत्रिक, सांप का जहर, बिल्ली पालने वाले, सीक्रेट सर्विस करने वाले, मनोवैज्ञानिक होते हैं। ये पोंगे पंडित और आत्माओं को बुलाने वाले भी होते हैं। 10. मघा नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग शाही तो नहीं होते लेकिन उनका शाही घरानों से सीधा संपर्क रहता है। वे उनके मैनेजर भी हो सकते हैं और महत्वपूर्ण कर्मचारी भी। इसके अलावा सरकार के अधीन बड़े पदों में काम करने वाले, बड़े वकील, जज, नेता, वक्ता, ज्योतिष, पुरातत्व वैज्ञानिक भी इसी नक्षत्र में जन्म लेने वाले होते हैं। 11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्मे लोग अगर महिलाओं से संबंधित सामान या बहुमूल्य रत्नों का व्यापार करते हैं तो उन्हें अवश्य ही सफलता मिलती है। ब्यूटीशियन, गायक, घर की साज-सज्जा या अन्य रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। विवाह से संबंधित हर करियर भी आप ही के लिए हैं। 12. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र मनोरंजन, खेल और कला से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे धार्मिक संस्थानों के मुखिया या पुजारी, परोपकार करने वाले, दान-पुण्य के कार्य से जुड़े, शादी-विवाह से संबंधित सलाह देने वाले या अंतरराष्ट्रीय मसलों से संबंधित लोग भी सफलता प्राप्त करते हैं। 13. हस्त नक्षत्र गहने बनाने वाले लोग, सेहत से संबंधित कार्य करने वाले, हास्य कलाकार, काल्पनिक कहानियां लिखने वाले, उपन्यासकार, रेडियो या टेलीविजन इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का संबंध अगर हस्त नक्षत्र से है तो उन्हें अवश्य ही सफलता मिलती है।

14. चित्रा नक्षत्र अपना बिजनेस चलाने वाले, घर की साज-सज्जा, गहने बनाने, फैशन डिजाइनर, मॉडल्स, कॉस्मेटिक, वास्तु-फेंगशुई, ग्राफिक आर्टिस्ट, सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, स्टेज आर्टिस्ट, गायक, इन क्षेत्रों में कार्यरत लोग सफलता प्राप्त अवश्य करते हैं।

15. स्वाति नक्षत्र व्यवसाय चलाने वाले, गायक, वाद्य यंत्र बजाने वाले, अध्ययन कार्य में संलिप्त, स्वतंत्र कार्य करने वाले, सामाजिक सेवा में लिप्त लोग सफल होते हैं। इसके अलावा न्यूज रीडर, कम्प्यूटर्स और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग सफलता पाते हैं।

16. विशाखा नक्षत्र शराब, फैशन, कला और साथ ही बोलने संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले ओग सफलता हासिल करते हैं। इसके अलावा सफल राजनेता, खिलाड़ी, धार्मिक नेता, नर्तक, सैनिक, आलोचक, अपराधियों का संबंध भी इसी नक्षत्र से है।

17. अनुराधा नक्षत्र सम्मोहन क्रिया में लिप्त, ज्योतिष शास्त्री, सिनेमा संबंधित क्षेत्र, फोटोग्राफर, फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर, औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, डेटा एक्सपर्ट, अंकशास्त्र विशेषज्ञ, खदानों में काम करने वाले, विदेश व्यापार से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं।

18. ज्येष्ठा नक्षत्र नीति निर्माण से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग, सरकारी अधिकारी, रिपोर्टर्स, रेडियो जॉकी, न्यूज रीडर, टॉक शो होस्ट, वक्ता, काला जादू करने वाले, जासूस, माफिया, सर्जन, हस्त कारीगर, एथलीट्स आदि क्षेत्रों से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं।

19. मूल नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिए दवाइयों से संबंधित क्षेत्र, न्याय, जासूसी, रक्षा, अध्ययन जैसे कार्य सफलता दिलवाएंगे। इसके अलावा वक्ता, सार्वजनिक नेता, सब्जियों के व्यापारी, अंगरक्षक, मल्लयुद्ध करने वाले, गणितज्ञ, सोने की खदान में काम करने वाले, घुड़सवार भी सफल होते हैं।

20. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र शिप संबंधी उद्योग में काम करने वाले प्रेरण, अध्यापक, भाषण देने वाले, फैशन एक्सपर्ट्स, कच्चे सामान का विक्रय करने वाले, बालों की सजावट देखने वाले, तरल पदार्थों का कार्य करने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं।

21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ज्योतिष, वकील, सरकारी अधिकारी, सेना में कार्यरत, अध्ययनकर्ता, सुरक्षा कार्य, व्यापारी, प्रबंधक, क्रिकेट खिलाड़ी, राजनेता और उत्तरदायित्व निभाने वाले कार्यों को करने वाले लोग सफल होते हैं।

22. श्रवण नक्षत्र किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले अध्यापक, वक्ता, बौद्धिक, छात्र, भाषाविद, कहानीकार, हास्य अभिनेता, गायन से संबंधित क्षेत्र से जुड़े लोग, टेलीफोन ऑपरेटर्स, मनोवैज्ञानिक, यातायात से संबंधित क्षेत्र में कार्यरत लोग सफलतम होते हैं।

23. धनिष्ठा नक्षत्र गायन, वादन, नृत्य, म्यूजिक बैंड इन सबसे संबंधित क्षेत्र के लोग सफलता पाते हैं। इसके अलावा मनोरंजन उद्योग, रचनात्मक क्षेत्र, कवि, ज्योतिष शास्त्री, प्रेत आत्माओं को बुलाने वाले लोग सफलता हासिल करते हैं।

24. शतभिषा नक्षत्र ड्रग्स या दवाइयों से संबंधित क्षेत्र में काम करने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं। सर्जन, मदिरा से जुड़े क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी सफलता पाते हैं।

25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मृत्यु से संबंधित किसी भी व्यवसाय से जुड़े लोग सफल होते हैं। कॉफिन बनाने वाले, कब्र खोदने वाले, अंतिम संस्कार से संबंधित सामान का व्यापार करने वाले सफलता पाते हैं। इसके साथ-साथ आतंकवादी, हथियार बनाने वाले, काला जादू करने वाले लोग भी सफलता पाते हैं।

26. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र योग और ध्यान से संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत लोग सफलता प्राप्त करते हैं। तंत्र-मंत्र करने वाले और रूहानी ताकतों से संपर्क स्थापित करने वाले लोगों को सफलता अवश्य मिलती है। इसके अलावा दान-पुण्य करने वाले लोग भी सफल होते हैं।

27. रेवती नक्षत्र सम्मोहन क्रिया करने वाले लोग, जादूगर, गायक, कलाकार, आर्टिस्ट, हास्य कलाकार, मनोरंजन करने वाले, कंस्ट्रक्शन बिजनेस से जुड़े लोग सफलता पाते हैं।

 

लाल किताब के १२ भावों में मंगल।।

 

मंगल ग्रह से आमतौर पर  लोग डरते हैं जबकि जिसका नाम ही मंगल हो वह अमंगल कैसे कर सकता है। यह ग्रह उग्र जरूर है लेकिन अशुभ नहीं। कुंडली में हर ग्रह शुभ और अशुभ फल देते हैं ऐसे ही मंगल भी दोनों तरह के फल देता है। मंगल की शुभता उसके साथ बैठे ग्रह से तय की जाती है अथवा उस पर पड़ने वाली शुभ ग्रहदृष्टि से। यहां हमने हर घर में मंगल के दोष और उनके निवारण पर चर्चा की है।

 

🔴मंगल- प्रथम भाव में

 

कुण्डली के प्रथम भाव में अर्थात पहले खाने में मंगल बैठा हो तो जातक में नीचे लिखे अशुभ लक्षण आ जाते हैं:-

 

  1. जातक झूठा और मक्कार होता है।
  2. भाइयों का अनिष्टकारक होता है।
  3. जातक की पत्नी की मृत्यु अग्नि दुर्घटना में हो।

 

  1. दो विवाह का योग बनता है।
  2. जातक की पत्नी रोगग्रस्त होती है।
  3. जातक झगड़ालू और लड़ाकू होता है।
  4. बारहवें भाव में चन्द्र हो तो जातक दरिद्र होता है।

 

🔴अशुभता दूर करने के उपाय एवं टोटके

 

  1. मंगल को शुभ बनाने के लिए हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करें।
  2. मिट्टी के घड़े में गुड़ डालकर मंगलवार को सुनसान स्‍थान में रख आएं।
  3. लाल रंग के वस्त्रों का ज्यादा उपयोग करें।
  4. मंगलवार का व्रत रखें।
  5. सिद्ध मंगल यंत्र धारण करें।

 

🔴मंगल-द्वितीय भाव में

 

कुण्डली के दूसरे खाने में मंगल बैठा हो तो आगे वर्णित अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक 9 वर्षों तक रोग से पीड़ित रहे।
  2. यदि जातक अपने भाइयों से छोटा है तो बड़े भाई की मृत्यु का योग बनता है।
  3. विवाहित जीवन में पति-पत्नी में आपसी क्लेश बना रहेगा।
  4. मंगल अशुभ हो तो जातक की मृत्यु लड़ाई-झगड़े में होने की आशंका रहती है।

 

🌷मंगल की अशुभता दूर करने के उपाय और टोटके

 

  1. दोपहर के समय बच्चों को फल बांटें।
  2. मंगलवार का व्रत रखें।
  3. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें।
  4. सवा किलो या सवा पांच किलो रे‍वड़ियां बहते जल में प्रवाहित करें।
  5. पांच छुहारे जल में उबालकर नदी में प्रवाहित करें।

 

🔴मंगल-तृतीय भाव में

 

कुण्डली में तीसरे खाने में मंगल बैठा हो तो निम्न‍िलिखित अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक शराबी होता है।
  2. चालबाज एवं धोखेबाज होता है।
  3. मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक ब्लड प्रेशर का रोगी हो सकता है।
  4. मंगल अशुभ होकर जातक की हत्या भी करवा सकता है।
  5. मंगल की अशुभता के कारण जातक अपना काम स्वयं बिगाड़ लेता है।

 

🔴मंगल की अशुभता दूर करने के उपाय एवं टोटके

 

  1. चापलूस मित्रों से दूर रहें
  2. साढ़े पांच रत्ती मूंगा (रत्न) सोने की अंगूठी में जड़वाकर मंगलवार के दिन धारण करें।
  3. मूंगा धारण करने की शक्ति (क्षमता) न हो तो 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें।
  4. हाथी दांत से बनी वस्तुएं घर में न रखें।
  5. चांदी की अंगूठी बाएं हाथ की उंगली में धारण करें।

 

🔴मंगल-चतुर्थ भाव में

 

कुण्डली में चौथे खाने में मंगल बैठा हो तो नीचे लिखी अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक मांगलिक होता है।
  2. जातक संतानहीन हो सकता है।
  3. जातक रोग से पीड़ित रहता है।
  4. क्रोध के कारण स्वयं की हानि होती है।
  5. वृद्धावस्था में अंधा हो सकता है।
  6. मंगल चौथे खाने में हो और बुध 12वें हो तो जातक पूर्ण रूप से दरिद्र होता है।

 

🔴मंगल की अशुभता नष्ट करने के उपाय एवं टोटके

 

  1. त्रिधातु की अंगूठी धारण करें।
  2. 'सिद्ध मंगल यंत्र' गले में अथवा दाहिने बाजू पर धारण करें।
  3. देवताओं की मूर्तियां घर में स्‍थापित न करें।
  4. अपने बिस्तर, तकिया आदि पर लाल रंग का कवर चढ़ाएं।

 

🔴मंगल-पंचम भाव में

 

कुण्डली के पांचवें खाने (भाव) में मंगल बैठा हो तो नीचे लिखी अशुभता जातक को प्रदान करता है।

 

  1. जातक (जिसकी जन्म कुण्डली हो), पाप कर्म में लिप्त शराबी हो सकता है।
  2. जीवन में अनेक परेशानियां आएंगी।
  3. मिरगी का रोगी भी हो सकता है।
  4. जातक नेत्र रोगी भी हो सकता है।
  5. जातक की स्त्री गर्भस्राव रोग से परेशान हो सकती है।

 

🔴उपाय एवं टोटके

 

  1. रात को सिरहाने तांबे के लोटे में पानी भरकर रखें और सुबह उस जल को पीपल के वृक्ष की जड़ में डाल दें।
  2. आंगन में नीम का पेड़ लगाएं।
  3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' गले में धारण करें या सवा पांच रत्ती मूंगा की अंगूठी बनवाकर दाहिने हाथ की उंगली में मंगलवार के दिन धारण करें।
  4. मंगलवार का व्रत रखें।
  5. मंगलवार को हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा बांटें।
  6. वैदिक विधि से 'मंगल शांति पाठ' कराएं।

 

🔴मंगल-षष्टम् भाव में

 

जिसकी कुण्डली में मंगल छठे भाव में होता है उसे निम्नलिखित अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक बवासीर या ब्लडप्रेशर का रोगी हो सकता है।
  2. जातक कामुक स्वभाव होता है और पराई स्त्रियों पर बुरी नीयत रखता है।
  3. मंगल छठे भाव में हो और बुध आठवें भाव हो तो जातक की छोटी उम्र में ही उसकी माता का देहान्त हो जाने की आशंका रहती है।
  4. मंगल छठे और बुध 12वें भाव में हो तो जातक के भाई-बहनों की स्थि‍ति दयनीय होती है।

 

🔴मंगल के उपाय एवं टोटके

 

  1. चार सूखे खड़कते ना‍रियल मंगलवार के दिन नदी में प्रवाहित करें।
  2. मंगलवार के दिन हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाएं और पीले लड्डू का प्रसाद चढ़ाकर लोगों को बांटें।
  3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करने से अशुभता का नाश होगा और शुभ फल मिलेगा।
  4. हनुमान चालीसा या हनुमान स्त‍ुति बांटें।
  5. कुंवारी कन्याओं का पूजन करें।

 

 🔴मंगल-सप्तम भाव में

 

कुण्डली के सातवें घर में मंगल बैठा हो तो नीचे लिखी अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक की स्त्री क्रोधी स्वभाव की होगी।
  2. जातक स्वयं क्रोध के कारण अपना नुकसान कर लेता है।
  3. जातक प्राय: पुत्रहीन होता है।
  4. ऐसे जातकों की पराई स्त्री से संबंध होता है।

 

🔴मंगल के उपाय एवं टोटके

 

  1. चांदी की ठोस गोली बनवाकर सदैव अपनी जेब में रखें।
  2. मंगलवार के दिन लस्सी जरूर पियें।
  3. लाल रूमाल अपनी जेब में रखें।
  4. बहन को मंगलवार के दिन अपने हाथ से मिठाई खिलाएं।
  5. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें।
  6. हनुमानजी का व्रत रखें, हनुमान चालीसा बांटें।

 

 🔴मंगल-अष्टम भाव में

 

कुण्डली में आठवें (घर) में मंगल बैठा हो तो निम्नलिखित अशुभ फल प्रदान करता है।

 

  1. आठवें भाव में बैठे मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक अल्प आयु वाला तथा दरिद्र होता है।
  2. जातक के लिए 28 वर्षों तक मौत का फंदा बना रहता है।
  3. मंगल आठवें भाव में हो और बुध छठे भाव में हो तो जातक की माता की मृत्यु जातक के बचपन में हो जाने की आशंका रहती है।
  4. जातक 'मर्डर केस' में फंस सकता है।
  5. जातक रोगी होता है।

 

🔴मंगल के उपाय एवं टोटके

 

  1. विधवा स्त्री की सेवा करें।
  2. चांदी की चेन धारण करें।
  3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' जरूर धारण करें।
  4. त्रिधातु की अंगूठी धारण करें।
  5. हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा हनुमानजी के मंदिर में जाकर बांटें।
  6. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें।

 

🔴मंगल-नवम् भाव में

 

कुण्डली में नवम् भाव में मंगल हो तो निम्नवत् अशुभ प्रभाव प्रदान करता है।

 

  1. जातक क्रोधी स्वभाव का होता है।
  2. विद्या अधूरी रहे।
  3. जातक झूठा होता है।
  4. ईमानदार हो फिर भी बदनामी मिलती है।
  5. जीवन के क्षेत्र में सफलता कम मिलती है।
  6. स्त्री की कमाई पर जीवन-यापन करता है।

 

🔴मंगल की अशुभता दूर करने के उपाय

 

  1. मंगलवार को 21, 51 या 101 हनुमान चालीसा बांटें।
  2. मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर एवं लड्डू चढ़ाएं।
  3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें।
  4. तांबे के सात चौकोर टुकड़े बनाकर मिट्टी के नीचे दबा दें।
  5. प्रतिदिन 'हनुमान स्तुति' का पाठ करें।

 

🔴मंगल-दशम् भाव में

 

दसवें खाने में बैठा मंगल नीचे लिखी अशुभता जातक को प्रदान करता है:

 

  1. जातक को चोरी के आरोप में जेल जाना पड़ सकता है।
  2. मंगल दसवें, सूर्य चौथे, बुध छठे खाने में हो तो जातक एक आंख का काना हो सकता है।
  3. मंगल के साथ कोई पापी ग्रह हो तो जातक बर्बाद हो जाता है।
  4. मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक 15 वर्ष तक बीमारी से पी‍ड़ित हो सकता है।

 

🔴मंगल अशुभता दूर करने के उपाय

 

  1. संतानहीन की सेवा करें।
  2. घर में हिरण पालें।
  3. मंगलवार को मीठा भोजन करें।
  4. हनुमानजी को लड्‍डू चढ़ाएं।
  5. मंगलवार को हनुमान चालीसा बांटें।

 

 🔴मंगल-एकादश भाव में

 

मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक को निम्नलिखित अशुभता प्रदान करता है।

 

  1. जातक कर्जदार रहता है।
  2. जातक की संतान झगड़ालू होती है।
  3. जातक को मित्रों से धोखे मिलते हैं।
  4. शिक्षा में विघ्न बाधाएं।
  5. आजीविका के लिए कठोर संघर्ष करना पड़े।

 

🔴मंगल अशुभता निवारण के उपाय

 

  1. बिना जोड़ वाला सोने का छल्ला धारण करें।
  2. काला कुत्ता पालें।
  3. केसर का तिलक लगाएं।
  4. कर्ज से मुक्ति के लिए प्रभावकारी 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें।
  5. मंगल व्रत रखें और पीले लड्‍डू का प्रसाद बांटें।

 

🔴मंगल-द्वादश भाव में

 

  1. शत्रुओं से हानि की आशंका।
  2. लाभ से अधिक व्यय होगा।
  3. घर में चोरी होने का भय।
  4. पत्नी से अनबन।
  5. जातक संतानहीन हो सकता है।

 

🔴उपाय एवं टोटके:-

 

  1. चांदी की चेन धारण करें।
  2. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें।
  3. एक किलो पतासे मंगल के दिन बहते जल में प्रवाहित करें।
  4. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करने से शुभ लाभ होगा।
  5. तंदूर में मीठी रोटी सेंककर कुत्ते को खिलाएं।
  6. साढ़े पांच रत्ती मूंगा सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण कर

 

 

*कन्या विवाह संबंधित शंका समाधान*

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*विवाह कहां होगा*

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माता-पिता अपनी कन्या का विवाह करने के लिए वर की कुंडली का गुण मिलान करते हैं। कन्या के भविष्य के प्रति चिंतित माता-पिता का यह कदम उचित है। किंतु, इसके पूर्व उन्हें यह देखना चाहिए कि लड़की का विवाह किस उम्र में, किस दिशा में तथा कैसे घर में होगा? उसका पति किस वर्ण का, किस सामाजिक स्तर का तथा कितने भाई-बहनों वाला होगा? लड़की की जन्म लग्न कुंडली से उसके होने वाले पति एवं ससुराल के विषय में सब कुछ स्पष्टतः पता चल सकता है। ज्योतिष विज्ञान में फलित शास्त्र के अनुसार लड़की की जन्म लग्न कुंडली में लग्न से सप्तम भाव उसके जीवन, पति, दाम्पत्य जीवन तथा वैवाहिक संबंधों का भाव है। इस भाव से उसके होने वाले पति का कद, रंग, रूप, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या कार्यक्षेत्र, परिवार से संबंध कि आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां सप्तम भाव के आधार पर कन्या के विवाह से संबंधित विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण प्रस्तुत है।

 

ससुराल की दूरी:

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सप्तम भाव में अगर वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ राशि स्थित हो, तो लड़की की शादी उसके जन्म स्थान से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी। यदि सप्तम भाव में चंद्र, शुक्र तथा गुरु हों, तो लड़की की शादी जन्म स्थान के समीप होगी। यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर हो, तो विवाह उसके जन्म स्थान से 200 किलोमीटर के अंदर होगा। अगर सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन राशि स्थित हो, तो विवाह जन्म स्थान से 80 से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा। यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो, तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा।

 

शादी की आयु:

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यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 13 से 18 वर्ष की आयु सीमा में होता है। सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो शादी 18 वर्ष के अंदर होगी। शुक्र ग्रह युवा अवस्था का द्योतक है। सप्तमेश शुक्र पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो 25 वर्ष की आयु में विवाह होगा। चंद्रमा सप्तमेश होकर पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो विवाह 22 वर्ष की आयु में होगा। बृहस्पति सप्तम भाव में सप्तमेश होकर पापी ग्रहों से प्रभावित न हो, तो शादी 27-28 वें वर्ष में होगी। सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त हो कर चर राशि हो, तो जातिका का विवाह दी गई आयु में संपन्न हो जाता है। यदि किसी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में बुध स्वराशि मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो, तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।

 

विवाह वर्ष ज्ञात करने की ज्योतिषीय विधि:

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आयु के जिस वर्ष में गोचरस्थ गुरु लग्न, तृतीय, पंचम, नवम या एकादश भाव में आता है, उस वर्ष शादी होना निश्चित समझना चाहिए। परंतु शनि की दृष्टि सप्तम भाव या लग्न पर नहीं होनी चाहिए। अनुभव में देखा गया है कि लग्न या सप्तम में बृहस्पति की स्थिति होने पर उस वर्ष शादी हुई है।

 

विवाह कब होगा यह जानने की दो विधियां यहां प्रस्तुत हैं। जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राशि अंक में 10 जोड़ दें। योगफल विवाह का वर्ष होगा। सप्तम भाव पर जितने पापी ग्रहों की दृष्टि हो, उनमें प्रत्येक की दृष्टि के लिए 4-4 वर्ष जोड़ योगफल विवाह का वर्ष होगा।

 

जहां तक विवाह की दिशा का प्रश्न है, ज्योतिष के अनुसार गणित करके इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जन्मांग में सप्तम भाव में स्थित राशि के आधार पर शादी की दिशा ज्ञात की जाती है। उक्त भाव में मेष, सिंह या धनु राशि एवं सूर्य और शुक्र ग्रह होने पर पूर्व दिशा, वृष, कन्या या मकर राशि और चंद्र, शनि ग्रह होने पर दक्षिण दिशा, मिथुन, तुला या कुंभ राशि और मंगल, राहु, केतु ग्रह होने पर पश्चिम दिशा, कर्क, वृश्चिक, मीन या राशि और बुध और गुरु ग्रह होने पर उत्तर दिशा की तरफ शादी होगी। अगर जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो और उस भाव पर अन्य ग्रह की दृष्टि न हो, तो बलवान ग्रह की स्थिति राशि में शादी की दिशा समझनी चाहिए। एक अन्य नियम के अनुसार शुक्र जन्म लग्न कुंडली में जहां कहीं भी हो, वहां से सप्तम भाव तक गिनें। उस सप्तम भाव की राशि स्वामी की दिशा में शादी होनी चाहिए। जैसे अगर किसी कुंडली में शुक्र नवम भाव में स्थित है, तो उस नवम भाव से सप्तम भाव तक गिनें तो वहां से सप्तम भाव वृश्चिक राशि हुई। इस राशि का स्वामी मंगल हुआ। मंगल ग्रह की दिशा दक्षिण है। अतः शादी दक्षिण दिशा में करनी चाहिए।

 

पति कैसा मिलेगा:

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ज्योतिष विज्ञान में सप्तमेश अगर शुभ ग्रह (चंद्रमा, बुध, गुरु या शुक्र) हो या सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तम भाव को देख रहा हो, तो लड़की का पति सम आयु या दो-चार वर्ष के अंतर का, गौरांग और सुंदर होना चाहिए। अगर सप्तम भाव पर या सप्तम भाव में पापी ग्रह सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु का प्रभाव हो, तो बड़ी आयु वाला अर्थात लड़की की उम्र से 5 वर्ष बड़ी आयु का होगा। सूर्य का प्रभाव हो, तो गौरांग, आकर्षक चेहरे वाला, मंगल का प्रभाव हो, तो लाल चेहरे वाला होगा। शनि अगर अपनी राशि का उच्च न हो, तो वर काला या कुरूप तथा लड़की की उम्र से काफी बड़ी आयु वाला होगा। अगर शनि उच्च राशि का हो, तो, पतले शरीर वाला गोरा तथा उम्र में लड़की से 12 वर्ष बड़ा होगा।

 

सप्तमेश अगर सूर्य हो, तो पति गोल मुख तथा तेज ललाट वाला, आकर्षक, गोरा सुंदर, यशस्वी एवं राजकर्मचारी होगा। चंद्रमा अगर सप्तमेश हो, तो पति शांत चित्त वाला गौर वर्ण का, मध्यम कद तथा, सुडौल शरीर वाला होगा। मंगल सप्तमेश हो, तो पति का शरीर बलवान होगा। वह क्रोधी स्वभाव वाला, नियम का पालन करने वाला, सत्यवादी, छोटे कद वाला, शूरवीर, विद्वान तथा भ्रातृ-प्रेमी होगा तथा सेना, पुलिस या सरकारी सेवा में कार्यरत होगा।

 

पति कितने भाई-बहनों वाला होगा:

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लड़की की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव से तृतीय भाव अर्थात नवम भाव उसके पति के भाई-बहन का स्थान होता है। उक्त भाव में स्थित ग्रह तथा उस पर दृष्टि डालने वाले ग्रह की संख्या से 2 बहन, मंगल से 1 भाई व 2 बहन, बुध से 2 भाई 2 बहन वाला कहना चाहिए। लड़की की जन्मकुंडली में पंचम भाव उसके पति के बड़े भाई-बहन का स्थान है। पंचम भाव में स्थित ग्रह तथा दृष्टि डालने वाले ग्रहों की कुल संख्या उसके पति के बड़े भाई-बहन की संख्या होगी। पुरुष ग्रह से भाई तथा स्त्री ग्रह से बहन समझना चाहिए।

 

पति का मकान कहां एवं कैसा होगा:

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लड़की की जन्म लग्न कुंडली में उसके लग्न भाव से तृतीय भाव पति का भाग्य स्थान होता है। इसके स्वामी के स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री होने से पंचम और राशि वृद्धि से या तृतीयेश से पंचम जो राशि हो, उसी राशि का श्वसुर का गांव या नगर होगा। प्रत्येक राशि में 9 अक्षर होते हैं। राशि स्वामी यदि शत्रुक्षेत्री हो, तो प्रथम, द्वितीय अक्षर, सम राशि का हो, तो तृतीय, चतुर्थ अक्षर मित्रक्षेत्री हो, तो पंचम, षष्ठम अक्षर, अपनी ही राशि का हो तो सप्तम, अष्टम अक्षर, उच्च क्षेत्री हो, तो नवम अक्षर प्रसिद्ध नाम होगा। तृतीयेश के शत्रुक्षेत्री होने से जिस राशि में हो उससे चतुर्थ राशि ससुराल या भवन की होगी। यदि तृतीय से शत्रु राशि में हो और तृतीय भाव में शत्रु राशि में पड़ रहा हो ,तो दसवी राशि ससुर के गांव की होगी। लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है। दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, या दशमेश से युक्त या दृष्ट हो, तो पति का अपना मकान होता है। राहु, केतु, शनि, से भवन बहुत पुराना होगा। मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन सुंदर, सीमेंट का दो मंजिला होगा। अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो, तो मकान बहुत विशाल होगा।

 

पति की नौकरी:

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लड़की की जन्म लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव पति का राज्य भाव होता है। अगर चतुर्थ भाव बलयुक्त हो और चतुर्थेश की स्थिति या दृष्टि से युक्त सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र की स्थिति या चंद्रमा की स्थिति उत्तम हो, तो नौकरी का योग बनता है।

 

पति की आयु:

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लड़की के जन्म लग्न में द्वितीय भाव उसके पति की आयु भाव है। अगर द्वितीयेश शुभ स्थिति में हो या अपने स्थान से द्वितीय स्थान को देख रहा हो, तो पति दीर्घायु होता है। अगर द्वितीय भाव में शनि स्थित हो या गुरु सप्तम भाव, द्वितीय भाव को देख रहा हो, तो भी पति की आयु 75 वर्ष की होती है।

 

 

*कुंडली के भाव एवं राशि अनुसार चन्द्रमा का प्रभाव*

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प्रथम भाव👉 प्रथम भाव का चंद्रमा जातक को विपरीत

लिंग के प्रति आकर्षित, रसिक, सभ्य, सौम्य तथा समस्याओं के निराकरण में माहिर बनाता है। वृषभ या कर्क का चन्द्रमा उसे भव्यता, भाग्य व सौम्यता प्रदान करता है। प्रथम भाव का चंद्रमा अध्ययन में अभिरुचि व ख्याति का भी द्योतक है। इस भाव में नीच का चंद्र व्यक्ति को व्यसनों का आदी तथा स्वभाव से कंजूस बनाता है।

जीवन के 27वें वर्ष अस्वस्थता व रोग का भय रहता

है।

 

द्वितीय भाव👉 द्वितीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, अध्ययन का प्रेमी, अच्छा वक्ता, धन व सुख का चाहने वाला तथा किसी विषय का गहरा ज्ञान रखने वाला बनाता है। चंद्रमा पर बुध का प्रभाव उसे पिता की संपत्ति से वंचित रखता है। विदेशों से अच्छा धन कमाता है। किंतु धन की स्थिति हमेशा ऊपर- नीचे होती रहती है। शुभ

ग्रहों के प्रभाव से चंद्रमा जातक को किसी विशेष

विषय का ज्ञाता, धन व्यय करने का ईच्छुक किंतु बहुत धन कमाने वाला बनाता है। जीवन के 27वें वर्ष में जातक को विशेष लाभ होता है।

 

तृतीय भाव👉  तृतीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को भ्रातृ प्रेम तथा आर्थिक संपन्नता प्रदान करता है। वह स्वस्थ, बुद्धिमान, कठिन विषयों का ज्ञाता, दूर स्थानों की यात्रा करने वाला, अच्छा लेखक किंतु मनमौजी बनाता है। भाग्योदय जीवन के तीसरे वर्ष में तथा 27 से 30वें वर्ष में यात्राओं से विशेष लाभ होता है। वृश्चिक का चंद्रमा उसे कानों में कष्ट, कंजूस, परपीड़क तथा धर्म की तरफ

झुकाव वाला बनाता है। इस स्थान पर शुभ राशि का चंद्रमा व्यक्ति को प्रसिद्ध कवि व लेखक बनाता है।

 

चतुर्थ भाव👉  चतुर्थ भाव का चंद्रमा व्यक्ति को सुखी,

प्रसिद्ध, खदानों से लाभ पाने वाला, विवाह के बाद भाग्योदय, अच्छी आय, उत्तम वाहन, माता का सुख, दुष्कर्मों से डरने वाला तथा धनी लोगों का संरक्षण पाने वाला होता है। विपरीत लिंग वालों को आकर्षित करने वाला, राजसी लोगों से लाभ पाने वाला एवं चंद्र-मंगल संयोग होने पर अधिक खाने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा से वह भ्रष्ट हो बुरे लोगों की संगत में पड़ता है। संतान से कष्ट पाता है। जीवन के 22वें वर्ष में भाग्योदय।

 

पंचम भाव👉 पंचम भाव का चंद्रमा जातक को धनवान, भाग्यवान, अध्ययन का प्रेमी, सम्मानित, रहस्यमय विषयों में रुचि वाला, करुण हृदय, दयावान, आनंदित, खुश रहने वाला, आत्मविश्वासी, संतुष्ट तथा ललित कलाओं में रुचि लेने वाला बनाता है। भाग्यवान संतति, जीवन में धन लाभ। यदि वृष या कर्क में चंद्रमा हो तो अधिक कन्याएं पैदा होती हैं। ज्ञानवान, सट्टे व लाटरी से लाभ, अच्छे वस्त्र व भोजन का शौकीन, धर्म में आस्था तथा पूजा पाठ में रुचि लेने वाला बनाता है। शनि से प्रभावित चंद्रमा उसे शरारती, दूसरों की हंसी उड़ाने वाला, मासूमों को सताने वाला बनाता है। जीवन के छठे वर्ष में बिजली व अग्नि से

भय रहता है।

 

छठा भाव👉 छठे भाव का चंद्रमा व्यक्ति को स्पष्ट वक्ता,

व्ययशील तथा नौकरों-चाकरों से परेशान रखता है।

कमजोर या बुरे ग्रहों के प्रभाव में जातक की आयु में

हानि होती है किंतु पूर्ण अथवा बढ़ता हुआ चांद उसे

दीर्घायु प्रदान करता है। इस भाव का चंद्रमा अनेक

शत्रु, आलस्य, अति कामुकता तथा अम्लीय दोष से

पीड़ित रखता है। वृषभ का चंद्रमा गले का कष्ट तथा

वृश्चिक का चंद्र बवासीर का कारण होता है। चंद्रमा

व शुक्र का योग व्यक्ति को अति कामुक, भाइयों से द्रोह रखने वाला तथा विपरीत लिंगियों पर भारी व्यय करने

वाला तथा अदालती मामलों में पराजय पाने वाला बनाता है। जीवन के पांचवें वर्ष में शारीरिक कष्ट

की संभावना रहती है।

 

सप्तम भाव👉 सप्तम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को करुणामय, विदेश में रहने का अत्यंत ईच्छुक तथा विपरीत लिंगियों से प्रभावित होने वाला बनाता है। व्यापार से लाभ पाने वाला, मीठे का शौकीन, प्रसन्न व प्रसिद्ध बनाता है। गुरु व बुध से युक्त चंद्रमा संपत्तियों का स्वामित्व तथा पत्नी व पुत्रों का सुख प्राप्त करने वाला बनाता है। शनि-चन्द्र की युति विवाह में अशांति की

द्योतक है। दूषित चंद्र व्यक्ति को अति कामुक तथा पत्नी से दुख पाने वाला बनाता है। जीवन के 24वें वर्ष में विवाह का योग होता है।

 

अष्टम भाव👉 अष्टम भाव का चंद्रमा अस्वस्थ देह तथा दूसरों की सुख-संपत्ति से ईष्र्या करने वाला बनाता है।

जीवन में पूर्ण सुख का अभाव रहता है। बलवान चंद्रमा विदेश में जीवन व साझेदारी से लाभ प्राप्त कराता है किंतु मन पूर्वाग्रहों व दुर्भावनाओं से ग्रसित रहता है। शुक्र व मंगल के दुष्प्रभाव से अकस्मात मृत्यु की संभावना रहती है तथा माता के स्वास्थ्य की हानि होती है। बृहस्पति

के संयोग से जातक की रुचि रहस्यवाद में भी होती है। जीवन के 32वें वर्ष में दुर्घटना का भय रहता है।

 

नवम👉 भाव नवम भाव का चंद्रमा जातक को पितृभक्त,

गुणी पुत्र वाला, दानशील, धनवान, धार्मिक व्यक्तियों की सेवा करने वाला तथा अपने अच्छे कामों के लिए जाना जा सकने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा का योग इसे नटखट जीवन साथी प्रदान करता है। वह दूसरों के अधीन सेवा करने वाला होता है। इस भाव में चंद्रमा दुर्भाग्य व मानहानि का कारक होता है। विदेशों से लाभ, 20 वर्ष की आयु में तीर्थयात्रा तथा 24वें वर्ष में भाग्य की देवी उस पर प्रसन्न होती है।

 

दशम भाव👉 दशम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, भाग्य सुख को भोगने वाला बनाता है। सुदर वस्तुओं का व्यापार करने वाला, संतोषी व्यक्ति, दूसरों की सहायता करने वाला, परिवार में प्रमुख तथा सौम्य स्वभाव वाला होता है। समाज में सम्मानित सरकारी कार्य में कुशल तथा शासन से लाभ पाने वाला होता है। भाग्यवान जीवनसाथी वाला, धनवान स्त्रियों को प्रभावित करने वाला तथा सरकार से सम्मान पाने वाला होता है। दूषित चंद्रमा दमा, विवाह-विच्छेद, आलस्य और दूसरों से अपमान का कारक होता है। चर राशियों का चंद्रमा

बहुत से व्यवसाय परिवर्तनों का कारण होता है। मंगल से युति हानि का तथा शनि से युति व्यवसाय में कठिनाइयों का द्योतक है। किंतु जीवन के 24व व 43वें वर्ष में लाभ को भी इंगित करता है।

 

एकादश👉 भाव एकादश भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, संतान द्वारा भाग्योदय तथा विपरीत लिंगियों द्वारा धन लाभ का कारण होता है। इस भाव का चंद्रमा ज्योतिष व धर्म में रुचि, सेवाभाव व जीवन के सुख भोगों का कारण होता है। वह समाज में ख्याति सहज पा लेता है तथा इतिहास का ज्ञाता होता है किंतु कमजोर व दूषित चंद्रमा उसे अवारा लोगों के प्रति आकर्षित करता है जो बदनामी का कारण होता है तथा संतान से सुख में भी हानि होती है। इसे सामाजिक अपमान का भय रहता है किंतु लाभदायक चंद्रमा 16वें वर्ष में धन व 27वें वर्ष में मान का कारण होता है।

 

द्वादश भाव👉 द्वादश भाव का चन्द्रमा व्यक्ति को

विदेशवासी, गुप्त विद्याओं में रुचि रखने वाला, एकान्त

प्रिय, संन्यासी वृत्ति वाला, त्यागी, औषधियों का व्यापार करने वाला तथा शुभ अवसरों व कार्यों मेंव्यय में रुचि लेने

वाला बनाता है। इस भाव में दूषित चंद्रमा व्यक्ति को

क्रोधी व्यक्तित्व, कुसंगति में रुचि, कंजूस मानसिकता

वाला, क्रूर व आलसी बनाता है। सूर्य व मंगल से

प्रभावित चंद्रमा, सरकार व शासन के दंड का भागी,

कपट करने वाला, समस्याएं पैदा करने वाला, नेत्र विकार से पीड़ित, जुए में हारने वाला व कारागार का

भोगी भी बना सकता है। जीवन के तीसरे वर्ष में अस्वस्थता तथा 45वें वर्ष में जल से भय की संभावना

होती है।

 

विभिन्न राशियों में चन्द्रमा का प्रभाव:-

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 मेष🐐 जैसा कि हम जानते हैं कि मेष राशि का स्वामी मंगल है तथा चंद्रमा व मंगल में सहज मित्रता है किंतु मेष राशि में चन्द्रमा अत्यंत भावुक व्यवहार करता है। इसका मुख्य कारण है कि चंद्रमा अति गतिशील ग्रह है और मेष एक क्षैतिजिक (चर) राशि होने के कारण उसे पर्याप्त आधार प्रदान नहीं कर पाती। जब तक कि चंद्रमा शुभ ग्रहों से संबद्ध या प्रभावित न हो। इसी कारण से व्यक्ति में चंचलता बनी रहती है तथा वह बहुत कुछ एकसाथ कर लेना चाहता है। वह धार्मिक रुचि वाला, ज्ञानियों का

मान करने वाला, देशाटन का प्रेमी, करुण हृदय तथा

उथले व्यवहार में विश्वास न रखने वाला होता है। वृष यह

चंद्रमा के उच्च का स्थान है यद्यपि उच्चतम शून्य से

तीन अंश तक शेष 3 से 30 अंश तक मूल त्रिकोण में

माना जाता है। 3 अंश पर यह उच्चतम होता है।

 

वृष🐂 राशि का स्वामी शुक्र है तथा चंद्रमा व शुक्र का

निकट का संबंध है इसलिए यहां चंद्रमा की गतिविधि में

हम विशेष उत्साह के दर्शन करते हैं। यहां रचनात्मक वृत्ति अपनी पूर्णता मं उपलब्ध है। यदि जातक रचनात्मक

क्रियाओं पर ध्यान दे तो वह आश्चर्यजनक परिणाम पा सकता है। इस राशि में चंद्रमा जातक को संपदा, संतान से सुख, भाग्य, शासन से सम्मान व सुखकारी जीवन

साथी प्रदान करता है। व्यक्ति को परिवार व वाहन का

सुख तथा धार्मिक वृत्ति भी प्रदान करता है।

 

मिथुन💏  मिथुन राशि का स्वामी बुध होने के कारण विशेष महत्व रखता है। बुध व चंद्रमा में अच्छे संबंध के कारण यहां जीवन के उतार-चढ़ाव देखने में आते हैं। इस राशि में चंद्रमा उत्तेजित अवस्थाओं में अपने उतार-चढ़ाव के साथ प्रभावी रहता है। अतः मिथुन में चंद्रमा होने पर

जीवन में उदासी के क्षण नहीं होते। कभी-कभी नैसर्गिक बुद्धि बहुत सुंदर परिणाम देती है तथा व्यक्ति शानदार उपायों को व्यक्त करता है जो अपने समय से आगे के जान पड़ते हैं। मिथुन का चंद्रमा व्यक्ति को माता-पिता का

भक्त व धार्मिक बनाता है। जीवन में सुख की कोई कमी नहीं होती तथा व्यक्ति को जीवन भर यात्रा करना आनंददायक लगता है।

 

कर्क🦀  चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है। अतः इस राशि

में चन्द्रमा सहज ही अच्छे परिणाम देता है। यह व्यक्ति को शांत, एकाग्र तथा अपनी समस्त शक्ति से काम करने वाला बनाता है। संतोषकारी परिणाम होने पर व्यक्ति की रुचि उसी कार्य में बनी रहती है अन्यथा वह अपनी रुचि परिवर्तित कर लेता है। कर्क का चंद्रमा जातक को घर, वाहन व कभी-कभी बहुत संपत्ति प्रदान करता है। नये अध्यावसायों में सफलता, धार्मिक वृत्ति, दानशीलता किंतु गुप्त रोगों से पीड़ा भी संभव होती है।

 

सिंह🦁 जैसा कि हम जानते हैं कि यह राशि सूर्य के स्वामित्व में है। अतः चंद्रमा सिंह राशि में सुख का अनुभव करता है। इस राशि में होने के कारण चंद्रमा कुछ अतिरिक्त उत्साही होता है तथा समय-समय पर अपना प्रभाव दिखाता है। जातक अपनी सामथ्र्य सिद्ध करना चाहता है तथा भारी चुनौतियां स्वीकार करता है। अपने

विषय में उसकी राय बहुत ऊंची होती है तथा वह अपनी बड़ाई करने से भी नहीं चूकता। सिंह का चंद्रमा शासन

से सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा तथा अधिकारिक पद देने वाला होता है। वह अत्यधिक ध्नार्जन करता है किंतु अस्वस्थ व शारीरिक कष्ट का भागी होता है।

 

कन्या👩 कन्या राशि का स्वामी बुध है। अतः चंद्रमा

कन्या राशि के जातक को कुशाग्र बुद्धि प्रदान करता है तथा वह तुरंत ही परिणामों को प्राप्त करने में सफल होता है। समस्याओं को वह बहुत व्यावहारिक बुद्धि से देखता है। अतः कुछ भी भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ता। तो

भी कभी उसके अपनी ही तार्किकता में उलझ जाने की संभावना रहती है। कन्या राशि का चंद्रमा जातक को

विपरीत लिंगों से सहवास व समस्त ऐश्वर्य प्रदान

करता है। वह यात्रा का ईच्छुक तथा विदेशों में रहने वाला होता है। धन कमाने की अच्छी क्षमता होती है। वह जल्दबाज, बिना सोचे बोलने वाला तथा गैर कानूनी कामों में रुचि लेने वाला होता है।

 

तुला⚖ तुला राशि का स्वामी शुक्र है तथा शुक्र के प्रभाव

से चंद्रमा अपने भव्य गुणों को खो बैठता है क्योंकि इस इस राशि में निकृष्ट मानसिक वृत्तियों को बढ़ावा देने की वृत्ति होती है। अतः जातक इन प्रभावों में बह जाता है

और दुर्भाग्यकारी गतिविधियों में संलग्न रहता है। वह दुश्चरित्र व्यक्तियों के संपर्क में आता है तथा धन व पद

की हानि का भागी होता है। धन की कमी उसके जीवन में

विशेष स्थान रखती है। विपरीत लिंगों से संबंध न सुखद होते हैं न लाभदायक। उसमें विवाद की वृत्ति, आत्मविश्वास में कमी, दरिद्रता तथा कभी-कभी हास्यास्पद व्यवहार की वृत्ति रहती है।

 

वृश्चिक🦂  वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है तथा यह

चंद्रमा के नीच का स्थान है। 3 अंश पर यह नीचतम होता है। स्वाभाविक ही नीच का ग्रह अपना स्वभाव व प्रभाव खो बैठता है और केवल नीचभंग की दशा में ही प्रभावी होता है। इस राशि में यही चंद्रमा के साथ होता है । जातक को अपने प्रयासों में अपमानित होना पड़ता है। दूसरों की सेवा में जाना पड़ता है। अपनों से द्वेष रहता है तथा धन की हानि होती है। उसे शासन से समस्या, उपक्रमों में निराशा व शारीरिक कष्ट होता है।

 

धनु🏹 धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा व

बृहस्पति की मित्रता के कारण धनु राशि में चंद्रमा

अच्छे परिणाम देता है किंतु अयोग्य विचारों व व्यक्तियों के प्रभाव में आकर परिणामों का बिना विचार किये अति उत्साही रहने की प्रवृत्ति रहती है। वे मेहनती व कार्यकुशल होते हं किंतु एकाग्रता के अभाव में कुछ भी लाभप्रद नहीं कर पाते और उद्देश्य से भटक जाते हैं। इन्हें पैतृक संपत्ति की हानि, मानसिक व शारीरिक कष्ट तथा

शासन द्वारा दंड की आशंका रहती है। इन सभी बाधाओं के होते हुए भी इनका परिश्रम और धैर्य ही इन्हें जीवन में

सफलता दिलाता है।

 

मकर🐊 चंद्रमा का विभिन्न राशियों से विभिन्न प्रकार का संबंध होता है। इसके दो कारण हैं। 1. चंद्रमा विभिन्न ग्रहों से विभिन्न स्तरों पर संबंध स्थापित करता है। 2. उसी के अनुसारव उसमें सहजता अथवा असहजता का राशि अनुसार अनुभव करता है। मकर राशि का स्वामी शनि ग्रह है। इस राशि में चंद्रमा बहुत ही व्यावहारिक हो जाता है तथासांसारिक ज्ञान से लाभ लेने का प्रयास करता है। इस राशि का जातक यात्राओं की ईच्छा वाला तथा संतान से सुख पाने वाला होता है। इसके व्यवहार में एक सतत अनिश्चितता रहती है तथा वह अज्ञात चिंताओं से भयभीत रहता है।

 

कुंभ🍯  शनि इस राशि का स्वामी भी है किंतु चन्द्रमा का इस राशि से संबंध मकर राशि से कुछ अलग प्रकार का

है। यहां विषयों का एक अंतद्र्वंद्व है जो व्यावहारिक परिणामों की प्राप्ति में बाधक है। यह द्वंद्व की स्थिति व्यक्ति के विकास क्रम के साथ-साथ देखी जा सकती है। वे सार्वभौमिक स्तर पर कार्य करना चाहते हैं किंतु छोटी-छोटी समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं। उन्हें संपत्ति की हानि, दुश्चिंता, कर्ज लेना तथा अनैतिक कार्यों में संलग्न होना पड़ सकता है। उसमें बुरे लोगों की संगत व दुव्र्यसनों

की लत पड़ने की संभावना रहती है।

 

मीन🐳 इस राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा का बृहस्पति से विशेष संबंध है जो मीन राशि में चंद्रमा के होने से ही स्पष्ट होता है। चंद्रमा अपनी समस्त योग्यता के साथ यहां प्रकट होता है तथा जातक की कल्पना को एक नई दिशा प्रदान करता है। यहां आकाश को छू लेने की आंतरिक ईच्छा काम करती प्रतीत होती है जो इस नव प्राप्त ख्याति का भाग हो जाना चाहती है। मन रचना की दुनिया में विचरने को आतुर होता है तथा एक के बाद एक रचनात्मक कृतियों के निर्माण में संलग्न रहता है। व्यक्ति अपने अच्छे कर्मो से धनार्जन करता है, बहिर्मुखी होता है तथा जल से संबंधित उत्पादों में रुचि लेता है और उससे लाभ पाता है। स्त्री व संतान से सुख तथा शत्रुओं का समूल नाश करने में भी जातक सक्षम होता है।